चुपके चुपके हम कभी, तुमको देखा करते हैं
तेरी चाहत मे न जाने, क्या क्या सोचा करते हैं।
गंगातट तेरे अधरों मे, और नैनों मे झील कभी
पूर्णिमा के चाँद मे कभी, तुमको ढूंढा करते हैं।
जब भी मिलते हैं तुमसे, गाँठ सी लग जाती है दिल मे
कुछ न कह पता हूँ, बात दिल की रह जाती दिल मे
अच्छे लगते तेरे सितम भी, अदा तेरी छू जाती दिल को
तेरे बिन लगता सब सुना, तनहाई रहती महफिल मे ।
तेरे नूपुर की छम-छम, तेरी चूड़ी की सरगम
सुनकर मैं खो जाता हूँ, भूल के अपने सारे गम ।
गिराती हो तुम बिजली, देकर एक कुटिल मुस्कान
देखना कहीं ले न जाए, एक दिन यह मेरी जान ।
जुल्फें तेरी जैसे कि, अमावस की काली रात हो
खो जाऊँ मैं इनमे कहीं, काश ! तो फिर क्या बात हो।
तेरी अल्हरता जैसे झरने की कलकल सी है
तेरे काया की क्यारी, जैसे कोई मधुवान सी है ।
तेरी खुशबू जैसे कोई भालसरी की डाली है
तेरी चाहत मुझको जैसे तू चीज कोई निराली है।
तेरा प्रणय पा सका तो, धन्य मैं हो जाऊंगा
तुमको खुशियाँ दे सका तो, सद्गति मैं पाऊँगा ।
- प्रणव झा [28.11.2010]
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