हर एक करवट मे अब गुजरा जमाना याद आता है
लड़कपन तो कभी बचपन हमारा याद आता है।
वो रातें जो कभी काटी थी हमने दोस्तों के संग
वो बिछड़े यार और उनका याराना याद आता है।।
वो लोरी याद आती है, वो किस्से याद आते हैं
वो कुछ लम्हे जो जीवन मे, जमाने बाद आते हैं ।
जबभी मिल जाए तुम रखलो, हृदय मे यूं सँजो कर के
कि पतझड़ मे बड़ी मुश्किल से झंझावात आते हैं।।
थकन और बेबसी मे साथ देना याद आता है
मुसीबत मे बढ़ाकर हाथ देना याद आता है ।
मैं जो भी हूँ, जहां भी हूँ, तुम्हारी मेहरबानी है
हृदय के हर स्पंदन से यही आवाज आती है।।
समर है, द्वंदहै, चेहरे पे सबकेक्यूँ उदासी है
गगन मे इन्द्र बैठे हैं, धरा फिर भी क्यों प्यासी है!
मिला क्यों प्राण उनको जी रहे निष्प्राण होकर जो
यहाँ हर आदमी की जिंदगी मे बदहवासी है ॥
सियाही से लिखूँ जो मैं, उसे आकार कर देना
मेरे इक स्वप्न को एक दिन, तुम साकार कर देना।
अमन और समृद्धि मे जी रहे हों देशवाले यूं
विधाता स्वर्गवालों मे धरा से डाह कर देना॥
नहीं गम हो जमाने की, जमाने मे न गफलत हो
मोहब्बत से भरा हो दिल, किसी से भी न नफरत हो
वो दिन फिर से कभी आएंगे क्या? बतला मेरे मौला
धरा पर स्वर्ग से हों दिन, लगे जैसे कि सतयुग हो
जहां हर राधिका को कृष्ण का सम्मान मिलता है
कृषक से लोग मिलते यूं कि जौं बलराम मिलते हों ।
जहां अन्याय से लड़ने धनंजय, गाँडीव धरते हैं
वही भूमि ये भारत है, हम जिसकी बात करते हैं ॥
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