एक सज्ज्न अक्सर
एक ऐसे पथ से गुजरते थे जहां उन्हे बुभुक्षित मिल जाते थे । सज्जन व्यक्ति होने के
नाते वो हमेशा ही उन्हे खाने को कुछ न कुछ दे दिया करते थे । एक दिन उनके साथ एक
मित्र था जिसने उन्हे भुखों को खाना देते देखा । देखते ही मित्र ने सज्जन का हाथ
पकडा় और कहा "ये आप क्या कर रहे हैं!" सज्ज्न ने मित्र से कहा कि ये
बेचारे भुखे हैं और खाना खाने से इन्हे त्रिप्ति मिलेगी , अत: सक्षम होने के नाते
यह मेरा कर्तव्य है कि इन्हे खाना दूं । इस पर मित्र ने कहा कि इससे तो केवल इसके
शरीर को त्रिप्ति मिलेगी जो की क्षणिक है । इससे अच्छा है कि इन्हे अच्छे भाषण
सुनाओ, दिवास्वप्न दिखाओ जिससे इसके तन को नहीं बल्कि इनकी आत्मा को त्रिप्ति
मिलेगी । सज्जन ने मित्र की बात को हल्के में लिया तो मित्र ने कहा रूको मैं
दिखाता हूं । ऐसा कहकर मित्र ने उनलोगों को एक जबर्दस्त भाषण सुनाया जिससे उन
भुखों के रोम रोम पुलकित हो उठे और उनके रूह तक उत्साहित हो उठे । जिससे वो अपनी
भुख-प्यास तक भुल बैठे । अब मित्र अक्सर ही उन भुखों की आत्मा को अपने रसीले भाषण
और दिवास्वप्न से नहलाने लगा था । किन्तु दिन बदिन उन बुभुक्षितों की क्षुधा बढती
ही जा रही थी और एक दिन उनके धैर्य ने जवाब दे दिया और तब जब मित्र उनके आत्मा की
क्षुधा मिटाने आए तो भुखे से रहा नहीं गया और उन्होने उचक कर मित्र की दाढी नोच ली
।
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