Friday 17 June 2016

Ram Vs Gangaram (राम बनाम गंगाराम)

यह वाकया मेरे बचपन की है जब मेरे बाबा (दादाजी) गुजर गए थे । उनके श्राद्धकर्म के दौरान गांव के प्रतिष्ठित रामनंदन पंडितजी रोजाना संध्याकाल गरूड पुरान की कथा बा̐चते थे । ये कथाएं काफ़ी रोचक और विस्मय से भरे हुआ करते थे ।  अत: मैं इन्हे खूब दिलचस्पी लेकर सुना करता था । इन्ही कथाओं के दौरान एक दिलचस्प प्रसंग आया जिसका सार निम्नानुसार था :

एक नगर में गंगाराम नाम का एक धनी सेठ रहा करता था । धर्म-कर्म में उसका कितना विश्वास था ये कह नहीं सकते किन्तु उसे अपना गुणगान सुनना एवं चाटुकारी  बहुत पसंद था । यह बात नगर के लोगों को मालूम था । एक बार उस नगर में कहीं से दो साधू आए । उन्होने कुछ दिन उस नगर में बिताने का निश्चय किया था । रोजाना लोगों से भिक्षा मांगकर लाते और जो रूखा-सूखा मिल जाता उससे अपना काम चलाते । इसी क्रम में उन्हे लोगों से ये मालूम हुआ की सेठ गंगाराम से उन्हे बहुत कुछ भिक्षा में मिल सकता है, किन्तु उन्हे इसके लिए उसका गुणगान एवं चापलूसी करना पर सकता है । पहला साधू सच्चे मन से साधू था अत: उसका मन ईश्वर में ही रमा रहता था जबकी दूसरे साधू को सांसारिक विषय-मोह ने घेर रखा था, अत: उसने निर्णय किया कि आगे वो भिक्षागमन के समय सेठ गंगाराम का गुणगान किया करेगा । अत: आगे से वो भिक्षागमन के समय गाता फ़िरता था कि "जिसको देगा गंगाराम उसको क्या देगा राम !" उसको इसका फ़ल भी मिला कि उसे गंगाराम एवं उसके चाटुकारों से अच्छी-खासी भिक्षा मिलने लगी और उसके दिन मजे में कटने लगे । किन्तु पहले साधू का मन राम में ही रमा रहा और वो गाता फ़िरता "जिसको देगा राम उसको क्या देगा गंगाराम!", भले ही उसे भिक्षा में रूखा-सूखा ही मिल रहा था । एक दिन गंगाराम ने सोचा कि ये दूसरा साधू सारे नगर में घूमघूम कर मेरा बहुत गुणगाण कर रहा है, जबकि पहलेवाला रामनाम की धुनी ही रमाता रहता है । इसलिए क्यों न इस दूसरेवाले साधू को मालामाल कर दिया जाए और पहले वाले को सबक सिखाया जाए । अत; उसने एक बडा सा तरबूजा मंगवाया और उसके अंदर ढेरसारी असर्फ़ी भरवा दी । फ़िर उसने दूसरे साधू को बुलवाया और उसे भिक्षा में वो तरबूजा दे दिया । यह देखकर दूसरे साधू को बहुत क्रोध आया कि मैने इसका इतना गुणगान किया और ये इसके बदले मुझे बस एक तरबूजा दे रह है ! ’खैर’ उसने वो तरबूजा एक फ़लवाले को दो रूपए में बेच दिए । संयोग से उस दिन पहले साधू का उपवास था । फ़लाहार के लिए वो फ़लवाले के पास गया और पांच रूपए देकर वही तरबूजा उसने खरीद लिया । आश्रम पहूंचकर जब उसने तरबूजे को काटा तो उसकी आ̐खें फ़टी रह गई । वो यह देखकर हैरान रह गया कि तरबूजे के अंदर स्वर्ण अशर्फ़ियां भरी हुई थी । इस प्रकार ’रामजी’ की क̨पा से पहला साधू धन-धान्य संपन्न हो गया था ।


आज भी मेरे मन:स्थल के समरक्षेत्र में राम और गंगाराम का संघर्ष जारी है और फ़िलहाल गंगाराम का पलडा भारी लग रहा है, किंतु ह̨दय क्षेत्र में कहीं राम के विजय की उम्मीद जगी हुई है ।  

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