लडकी: हाय!
लडका: हेल्लो!
लडकी: अरे क्या हुआ मूड क्यूं आफ़ है?
लडका: अब क्या बताऊं, मकानमालिक ने रूम खाली करने की धमकी दे रखी है ।
लडकी: लेकिन क्यूं?
लडका: अरे कुछ नहीं बस किराया देने में थोरी देरी हो गई है । वो भी ऐसा नही है कि मेरे पास पैसे नहीं है, मेरे होम ट्यूशन वाले बच्चों के पेरेन्ट्स ने आनलाईन फ़ी ट्रांसफ़र कर दिया है, पर मकानमालिक को तो बस कैश चाहिए।
लडकी: हुंह! तो लगो फ़िर बैंक और एटीएम की लाईन में ।
लडका: २ घंटे एटीएम की लाईन में लगने से मैं दो घंटे बच्चों को पढाना बेहतर समझता हूं । और वैसे भी कुछ दिनो की ही तो बात है थोरा सब्र कर ले या फ़िर डिजिटल ट्रांसफ़र से पेमेंट ले ले। आखिर डिजिटल ट्रांसफ़र में बुराई क्या है ।
लडकी(व्यंगात्मक लहजे में): हां हां तुम जैसे दर्जनो किरायेदार से वो डिजिटल पेमेंट ले ले ताकि उसके आय का खुलासा हो जाए! खैर छोडो यार सब ठीक हो जाएगा ।चिल! दिल्ली दिलवालों का है यार।
लडका: शायद तुम सही कह रही हो, पर यहां के दुषित वातावरण में सबके दिल काले पर चुके हैं ।
लडकी(माहौल को हल्का बनाती हुई): अच्छा छोडो ये सब। ये बताओ कि तुम मुझे अपने गांव का टूर कब करवाओगे?
लडका: फ़िलहाल तो नहीं ।
लडकी: क्यॊं? तुम मुझे ले जाना ही नही चहते या लोग सवाल करेंगे इस बात से घबरा रहे हो?
लडका: नहीं इनमे से कोई भी बात नहीं है।
लडकी: तो फ़िर क्या बात है ?
लडका: बत यह है कि मेरे घर में टायलेट नहीं है । वह लंबी सांस छोडते हुए बोला ।
लडकी: ओह! आइ एम सारी । मेरा मकसद तुम्हे हर्ट करने का नहीं था ।
लडका: मैं हर्ट नहीं हो रहा हूं । मैं अपनी सच्चाई को बेहतर समझता हूं । घर के सीमित आय में रोजमर्रा के खर्च के बीच कभी इसकी ऐसी जरूरत महसूस ही नहीं की गई । पिछले साल दीदी की शादी हुई, एक छॊटा सा पक्का मकान भी बन गया है । फ़िलहाल इन कामो के लिए लिए गए कर्ज उतारना और मेरी पढाई ही घर की प्राथमिकता है ।
लडकी: हुंह ! लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए टायलेट बनाने के लिए कई सरकारी योजनाएं भी तो चल रही हैं, तुम इसका लाभ क्यों नहीं उठाते ।
लडका: हा..हा..हा.हा। सरकारी योजनाओं का जितना बडा ऐलान होता है उसका छॊटा सा भाग ही जमीन पर उतरता है, और उसमे से भी बडा हिस्सा सशक्त और पहुंच वाले लोगों को मिल जाती है । हमारे यहां उन लोगो को भी टायलेट बनाने के लिए पैसे मिले हैं जिनके घरों में कारें खडी हैं, बस हम जैसों को ही नहीं मिला ।
लडकी: तो क्या इन योजनाओं का लाभ किसी गरीब को मिलता ही नहीं है!
लडका: नहीं ऐसा नहीं है । आज देश में गरीब होना उतनी बडी समस्या नहीं है जितनी बडी समस्या एक सवर्ण होते हुए गरीब होना होता है। बहुत से अनुसूचित जाति, पिछडी जाति वर्ग के भाई लोगों के घर सरकारी योजनाओं से टायलेट बने हैं ।
खैर जाने दो इन बातों को। मैं तुम्हे छठ में गांव ले चलुंगा ।
लडकी: छठ में क्यों? छठ में तो अभी १० महीने का समय है न!
लडका: वो इसलिए कि मैं हर महीने ढाई तीन हजार रूपए बचा रहा हूं और छठ तक मेरे घर टायलेट बन जाएगा और दूसरी बात कि मेरे गांव में घुमने और लोगों से मिलने के लिए छठ से बडा कोई समय हो ही नहीं सकता ।
वो विस्मय मिश्रित मुस्कान के साथ उसको देखने लगी ।
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