संघर्ष आ तपन
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तप से जे तपि कऽ निखरल अछि,
वैह धरा पर चमकल अछि।
सोना सहि कऽ तपन आँच केर,
कुंदन बनि कऽ दमकल अछि।
लोहा जा धरि ताप नै पाओत,
कोना क ओ फौलादी बनत?
जे सहि जाय अछि चोट विकट,
वैह तऽ युद्ध में तनल रहत!
कांसा जखन भट्ठी में पिघलय,
सुंदर मूरत गढईत अछि।
तपि कऽ, गलि कऽ, साँचा में ढलि
मोल ओकर फेर बढ़ईत अछि।
मोम जड़य जखन बनि कऽ दीप,
अस्तित्व ओकर बिला जाएत अछि।
कोयला, सेहो जैड़ कऽ, तपि कऽ,
बनि कऽ राख़ मेटा जाय अछि।
संघर्षक ताप सहि पाबय ओ,
जकरा में अछि मूल्य गहल।
जे भीतर से छैक खोखला
ओ झोंका में ढहल बहल।
संघर्ष नहि बस तोड़य सदिखन,
मुदा गढ़य व्यक्तित्व नवल।
जेकरामें होय मूल्य, धीरज, बल
वैह तपि कऽ फेर आरो निखरल।
आत्मा मे होय दीप्ति ज्ञान केर,
अन्हरिया किछु कऽ पाबय की?
जे दुख के पीबि कय जीबय,
संघर्ष से ओ फेर डेराय अछि की?
धीरज, साहस, सत्य, विवेक
चित्त में जेकरा बहय अछि।
वैह मनुष महान बनल अछि,
सभटा तम जे सहय अछि।
जड़य तऽ सबके परय अछि,
किछु राख, किछु अंगार बनल।
किछु डिबिया सन टिमटिम जड़य,
किछु तपि कऽ फौलाद बनल।
[प्रणव कुमार झा, राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड, नई दिल्ली]
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