सोमवार, 4 अगस्त 2025

हमर प्राण भारत केर

 

हमर प्राण भारत केर

हमर मोन समर्पित अछि, हमर देह समर्पित अछि

हे हमर देशक माटि, अहाँ के नेह समर्पित अछि।

लेलहु आकार अहिं से हम, अहिं मे अछि विलीन भेनाई

सदा अहाँ वत्सला रहब यैह बस भाव अर्पित अछि ।

 

हमर कंठ में गूँजय, सदिखन वेदक वाणी होय,

बढ़य विज्ञान, सृजन, संधान, अपन जय कहानी होय।

नै होय अन्याय, नै ड  कोनो, एत्त बस प्रेम टा बढ़इ,

सभटा संतान भारत के तरेगन सन चमकइत रहय।

 

मुकुट जैना सदिखन शीश पर गिरिराज विराजित छैथ

चरण धोय धोय के सिंधुराज सागर खूब गरजैत छैथ।

देलक आश्रय अहांक वन-नदी महान सभ्यता सभ के  

भारत भूमि अहाँक विविधता समूचा विश्व समेटने अछि।

 

हमर शान अहिं से अछि, हमर मान अहिं से अछि,

सदैव उन्मुक्त लहराबैत तिरंगा आन अहाँ से अछि।

तपस्वी साधना सिंचित, सजाओल खेतखलिहान में,

सदैव गूंजय सुमंगल गीत, सबहक घर आँगन मे।

 

ली हम प्रण सत्यनिष्ठा केर, एकरा सदिखन राखबाक अछि

भेटय बल उच्च नैतिकता केर हमरा ओ मूल्य पेबाक अछि।

बता दी हम ई दुनिया के भूमि अछि, ई राम, गांधी केर

देलक आदर्श उच्च एहन जेकरा दुनियाँ मानलक अछि।

 

चलु मिलजुलि प्रतिज्ञा ली, बढ़ाबी मान भारत केर,

नै कोनो शत्रु छूबि पाबय, राखब सम्मान भारत केर।

अहाँ केर माटि के सोनहगर गंध, हम्मर प्राण में बसय,

अहाँके वंदन, अहाँके अर्पण, हमर प्राण भारत केर!

 

चलु ओय शौर्य के धारा में अपन रीत गढ़ई छी,

चलु बलिदानी सबहक वीरता के गीत पढ़ई छी।

ई माटि अछि परमवीर केर, ई अछि माँ भारती मजबूत,

विविधता मे समेटने एकताके, धरा ई अछि बड्ड अजगुत! 

 

सप्पत ल , सभके राष्ट्र के आगा बढ़ेबाक अछि

तपस्या, त्याग, संकल्प से भारत के सजेबाक अछि। 

बता दियौक जमाना के, वतन ई ओ पुरातन अछि

जतय युगयुग मे देवता आबि चरण पखारलथि अछि।

-      प्रणव कुमार झा, राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड, नई दिल्ली

 

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