मंगलवार, 19 जून 2018

करियर विकल्प के रूप में फिजियोथैरेपी

नीट-यूजी में जो छात्र पहले, दूसरे या तीसरे अटेम्ट में इतना स्कोर नहीं कर पते हैं की उन्हें अपने अनुकूल किसी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की सीट मिल पाए, ऐसे छात्रों के लिए बैक अप प्लान के रूप में बीपीटी(बैचलर ऑफ़ फिजियोथेरपी) कोर्स एक अच्छा ऑप्शन हो सकता है.

फिजियोथैरेपी विज्ञान की ऐसी विधा है जिसके अंतर्गत शारीरिक व्यायाम के जरिए व्यक्ति के रोगों व्याधियों का उपचार किया जाता है। फिजियोथैरेपिस्ट का काम रोगियों में किसी बीमारी, चोट, अक्षमता या बढ़ती उम्र की वजह से उपजी शारीरिक व्याधियों का उपचार करना है। आज लोग बीमारी के उपचार के लिए समग्र नजरिया अपनाने लगे हैं। इसकी वजह से दुनिया भर में फिजियोथैरेपिस्ट्स की मांग में तेजी से इजाफा हुआ है।

बीपीटी कुल साढ़े चार वर्ष का पाठ्यक्रम है जिसमे छह महीने का इंटर्नशिप शामिल है। बीपीटी के बाद क्योंकि आप एक रिकॉग्नाइज्ड भौतिक चिकित्सक बन जाते हैं इसलिए अप अपने नाम के आगे डॉक्टर प्रीफ़िक्स लगा सकते हैं, यद्यपि आईएमए का इसपर विरोध रहता है। फिजियोथैरेपिस्ट शारीरिक क्रियाओं, व्यायाम, कुछ मशीनों, लेजर आदि का प्रयोग कर मरीज का उपचार करते हैं, पर इन्हे दवाई लिखने का अधिकार नहीं होता है। यद्यपि प्राइवेट क्लिनीक चलानेवाले फिजियोथैरेपिस्ट ओटीसी दवाइया भी लिखते हैं। बीपीटी के बाद मैं रिकमंड करूंगा की बेहतर करियर  ऑप्शन के लिए छात्रों को एमपीटी भी कर लेना  चाहिए. एमपीटी में कार्डिएक एवं पल्मोनरी थैरेपी, क्रिटिकल केयर थैरेपी तथा न्यूरोथैरेपी सबसे सबसे प्रभावी एवं बेहतर अवसर उपलब्ध करानेवाले स्पेशलटी हैं। इन कोर्स के बाद आप सुपर स्पेशलटी अस्पतालों/विभागों  में सुपरस्पेशलिस्ट चिकित्सकों के साथ अपनी सेवा दे सकते हैं।

फिजियोथैरेपिस्ट्स अस्पतालों, विकलांगों के लिए बने पुनर्वास केंद्रों, स्वास्थ्य केंद्रों, शारीरिक मानसिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के लिए बने स्कूलों, स्वास्थ्य संस्थानों के अलावा डिफेंस मेडिकल प्रतिष्ठानों और स्पोट्र्स क्लबों में भी अपनी सेवाएं देते हैं। इंजुरी फ्रैक्चर्स, जोड़ों के दर्द, खिंचाव, मोच, स्ट्रोक्स के उपचार में काबिल फिजियोथैरेपिस्ट की सेवाएं कारगर साबित होती हैं। चिकित्सा की विविध विधा जैसे ऑर्थोपेडिक्स, कार्डियोलॉजी,न्यूरोलॉजी एवं पीडियाट्रिक्स के डॉक्टरों के साथ भी फिजियोथैरेपिस्ट संयुक्त रूप से कार्य करते हैं। ट्रॉमा के बाद के रिहैबिलिटेशन, हड्डी एवं बदन के दर्द, पैरालाइसिस आदि केस में शारीरिक नसों को सुलझाकर मरीजों को आराम एवं स्वास्थ्य लाभ में फिजियोथैरेपिस्ट अच्छी भूमिका निभाते हैं। इंटेंस्टिव केयर यूनिट एवं नर्सरी में भी आजकल फिजियोथैरेपिस्ट की भूमिका बढ़ रही है।

आज जिस तरह के अत्याधुनिक अस्पताल, स्वास्थ्य केंद्र क्लीनिक्स खुल रहे हैं और हेल्थ सेक्टर का विस्तार हो रहा है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि फिजियोथैरेपिस्ट की मांग आगे चलकर और बढ़ेगी। कई राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी, फिल्म एवं मनोरंजन से जुड़े लोग खुद को फिट रखने फिटनेस संबंधी सुझाव लेने के लिए फुलटाइम पर्सनल फिजियोथैरेपिस्ट्स की सेवाएं लेते हैं।

प्रवेश: बीपीटी कोर्स में प्रवेश के लिए छात्र को पीसीबी में ५०-५५% अंक होए चाहिए. विविध संस्थानों में प्रवेश की अपनी प्रक्रिया है, अधिकाँश संस्थान प्रवेश परीक्षा के जरिये प्रवेश देते हैं तो कुछ संस्थान नीट के स्कोर और कुछ बारहवीं  के स्कोर के आधार पर प्रवेश देते हैं। फिजियोथैरेपिस्ट्स बनने की चाह रखने वाले अभ्यर्थियों में लंबे समय तक खड़े रहकर काम करने की क्षमता होनी चाहिए। काबिल फिजियोथैरेपिस्ट वही है जो मरीज की जरूरत को अच्छी तरह समझ सके, उसके प्रति संवेदनशील रवैया अपनाए। सफल फिजियोथैरेपिस्ट बनने के लिए व्यक्ति में इन खूबियों के अलावा मानवीय संरचना का संपूर्ण ज्ञान होना भी अति-आवश्यक है।

 बीपीटी एवं एमपीटी कोर्स के लिए कुछ अच्छे संस्थान हैं:
. क्रिश्चन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर,
. मद्रास मेडिकल कॉलेज
. निजाम इंस्टीच्यूट ऑफ़ मेडिकल सायन्सेस, हैदराबाद
. आईपीजीएमईआर, कोलकाता
. जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली
. पीजीआईएमएस, रोहतक
. एसजीपीजीआई, लखनऊ
. जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी दिल्ली
. भारती विद्यापीठ पुणे
१०. रमैया मेडिकल कॉलेज, बंगलुरु आदि

इन संस्थानों में १५००० से  तीन लाख प्रति वर्ष के फी पर आपको बीपीटी कोर्स कराया जाता है।

 रोजगार के अवसर: यदि आप सरकारी क्षेत्र में कार्य करने के इक्षुक हैं तो बीपीटी कोर्स करने से पहले सोच लें, क्योंकि बीपीटी के बाद वर्तमान में सरकारी क्षेत्र में रोजगार बहुत कम है, यद्यपि एमपीटी के बाद आप सरकारी मेडिकल कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर या कंसल्टेंट के रूप में ज्वाइन कर सकते हैं। बीपीटी को ग्रेजुएशन की तरह करते हुए यदि आप यूपीएससी या पीसीएस की तैयारी करना चाहते हैं तो वह भी कर सकते हैं। बीपीटी करने के बाद एक फिजियोथैरेपिस्ट ३५००० से एक लाख रुपये महीने की आमदनी से शुरुआत कर सकता हैं।बीपीटी के बाद आप अपना क्लिनिक चला सकते हैं, ऑर्थोपेडिक, न्यूरो या कार्डियो अस्पताल/क्लिनिक के साथ टाई-अप कर फ्रीलांसर कार्य कर सकते हैं। इस केस में   यदि आप २०० से ५०० रुपये प्रति मरीज का पाते  हैं तो औशतन दस मरीज के लिए दिन में २००० से ५००० तक कमा सकते हैं इसके अलावा आप किसी बड़े स्कुल, संस्थान, स्पोर्ट्स क्लब, टीम,जिम, रिहैबिलिटेशन के क्षेत्र में कार्य कर रहे एनजीओ आदि को भी अपनी सेवा देते हुए अपने करियर की शुरुआत कर सकते हैं. एमपीटी के बाद आप को यदि बड़े कॉर्पोरेट अस्पताल में सुपरस्पेशलटी विभाग में विशेषज्ञ या फ्रीलांसर सलाहकार के रूप में मौक़ा मिलता है तो आप अच्छे एक्सपोजर के साथ ही अच्छी कमाई भी कर सकते है।
फिजियोथैरेपिस्ट के लिए जहां सरकारी क्षेत्र में रोजगार के बहुत काम अवसर हैं, वहीँ इन्हे ऑर्थोपेडिक्स वालों से भी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ जाती है(खासकर छोटे शहरों में क्लिनिक जमाने में) जिस तरह से छोटे-छोटे प्राइवेट कॉलेजों की मशरूमिंग हो रही है, उससे यह अंदेशा भी है की अगले कुछ वर्षों में बीपीटी पास  लोगों की संख्या काफी सेचुरेटेड हो जाए ऐसे में ऐसे में इस क्षेत्र में भी बेरोजगारी की समस्या सकती है।इसीलिए मैं रिकमंड करता हूँ की आप किसी अच्छे संस्थान से ही यह कोर्स करें जहां आपको बेहतर ज्ञान और कौशल प्राप्त हो सके, जिससे आपको भविष्य में रोजगार प्राप्त करने में कोई कठिनाई हो।
अंत में फिर  वही कहूंगा की आप जो भी करिये मन से करिये, सफलता आपके कदम चूमेगी।

शनिवार, 9 जून 2018

जहाज परहक गप्प आ दक्खिन के संस्कृति (संस्मरण:मैथिली)


जहाज परहक गप्प आ दक्षिणक संस्कृति ।

लेखक आ अनुवादक : प्राणव झा

(खाली स्वांतः सुखाय, अकादमिक आ शोध कार्य लेल )

 

एक बेर हम डीएनबी परीक्षा के सिलसिला में बंगलुर जायत रहि।  छैठ के पड़ना के दिन छल।  एयरपोर्ट पर जखन चेकिन के लाइन में छलहुँ त अपना आगा एकटा अधेड़ उमैर के आदमी ठाढ़ भेल देखलौं जे ककरो सं फोन पर भोजपुरी में गपियाइत छल।  ओकर हुलिया कहु त किछु एहन सन छल जे एकटा अंगा फुलपेंट पहिरने, अंगा अंदरसूटिंग नै कैल गेल छल, पैर में एकटा हवाही चप्पल पहिरने आ कन्हा पर एकटा कपड़ा बला झोरा टांगने एक हाथ में मोबाइल आ दोसर हाथ में टिकट नेने।  फोन पर हुनकर गप्प सुनि क ई बुझबा में भांगट नै रहल छल जे ई सज्जन बिहार सं सम्बन्ध राखै छैथ।  ताहि से फोन राखला के बाद अपनैति में हम हुनका से पुछलियै जे की यौ अहाँ बंगलौर जा रहल छी की? 9W-815  फ्लाइट सं जा रहल छी की? ओ उत्तर में बजलाह जे हं, मुदा फ्लाइट के नाम टिकट में लिखल छैक हमरा अंग्रेजी पढ़ नै अबैत अछि अहाँ पढ़ी लिय।  त हम फेर पुछलिये जे ओतय बेटा रहैत अछि की? तै पर ओ बजलाह जे नैं, हमर मालिक के बेटा पुतहु रहैत छैन्ह। ओकरे सब लेल छैठ के प्रसाद ल जा रहल छी।  अगत्या ओ  प्रश्न केलाह जे कहु त बैंगलोर में कोनो टिकरी-पिडुकिया नै बिकायत हेतैक की, जे ई बुढ़वा हमरा एत्तेक पाई खर्च क के बैंगलोर प्रसाद पठायब लेल भेज रहल अछि! दू हजार से कम के त ई टिकट नै हेतैक।  हम कहलियै जे बैंगलोर के टिकट चारि हजार सं कम के नै हैत हमर देखु जे सात हजार के अछि। फेर हुनकर टिकट देखैत कहलियैन जे अहाँ के टिकट साढ़े चारि हजार के अछि।  फेर हम कहलियैन जे बात टिकरी-पिडुकिया के नै छैक बात छठि माई के लेल आस्था आ बेटा-पुतहु लेल स्नेहक छै।

 

फेर ओ आगा बाजय लगलाह जे हम हवाई चप्पल पहिरि के आयल छी, से हमरा हवाई जहाज में बैस देत की नै? हम आश्वासन दैत कहलियै महाराज कोनो दिक्कत नै छैक आ अब त प्रधानमंत्रीजी सेहो कहला अछि जे हवाई चप्पल वाला सब हवाई यात्रा क सकय अछि।  संजोग से हमर नजैर तखने एकटा विदेशी महिला पर पड़ि गेल जे हवाई चप्पल पहिरने छलीह।  हम हुनका दिस तकबैत कहलियैन जे देखु ओहो पहिरने छथिन।  ई सज्जन के नजैर ओ महिला के हाफ पेण्ट पर चली गेलैन।  छैठ के सीजन तक ठंढियो आबिये गेल रहय छै।  ओ पुछलाह जे एकरा सब के ठंढी नै लगै छैक जे ई हाफ पेण्ट पहिरने घुमल घुरैत अछि! हम कहलियैन नै यौ, ई सब ठंढा देश के निवासी अछि की ने तैं एत्तेक तापमान एकरा सब लेल गर्मीए बुझू।  फेर ओ बतबै लागल जे मालिक हमरा जाय लेल रु० 4999 के जूता किन देने छलाह, बजलाह जे बिनु जूता पहिरने जूनि जैहैं नै त एयरपोर्ट से भगा देतौ।  मुदा हमरा जुत्ता पहिर के आदत नै अछि से रिस्क पर चप्पल पहिरि के आबि गेलियै।

 

आगा चेकिन के बाद डेस्क के छौड़ी अंग्रेजी में गिटिर-पिटिर करैत हुनका से बैगेज के लेल पुछलक त हमर मुंह देख लगलाह।  हम ओकरा कहलियैन जे हिनका लग ई झोरा छोड़ि कोनो आन बैगेज नै छैन फेर ओ हिनका जखने आगा जाय लेल कहलकैन बस ई सीधा आगा बढ़ि क बैगेज बला लिफ्ट दिस छरपै लगलाह।    थाम्ह-थइहर केलकै आ हमरा ताकि क ब्यंगात्मक मुस्की छोड़य लागलिह।  हम ओय सज्जन के कहलियैन अब आगा बामा दिस जेबा के छैक आँहा थम्हू हमहू चेकिन करा क संगे चलै छी।  हमरा संगे इक्जाम मटेरियल  के अटायची छल जेकर ओजन लिमिट से किछु बेसी भ गेल।  ओना त ओकर भाड़ा सरकार घर से जएबाके छल मुदा हम आदत सं मजबूर सरकार के पाई बचेबा खातिर कहलियैन जे ई सज्जन हमरे संगे छैथ से एक्स्ट्रा ओजन के भार हिनका टिकट में मैनेज क लिय।  तै के बाद हम अंदर दिस विदा भेलौं।   हमर दुनू के गप्प बुझ में हिनका कोनो भांगट नै रहल छलै।  ओ बजलाह से अहाँ अपन अटैची के भर हमर टिकट में साटल से निक नै। हमरा आगा  पकरत त हम एक्कोटा पाई नै देबै।  हम ओकरा बुझबैत कहलियै - अहाँ चिंता जूनि करू अहाँक एक्कोटा पाई नै लागत आ जौं लागत त हम संगे छी ने हम पाई द देब।  जखन हुनकर मोन शांत भेलै त ओ पुछला जे अहाँ बैंगलोर घुमय लेल जाय रहल छी? हम कहलियैन – नै। डॉक्टर सब के एकटा परीक्षा छैक ताहि सिलसिला में जा रहल छी।  तखन ओ बजलाह – ओह! तखन अहाँ बड़का डॉक्टर छी की? हम चुटकी लैत कहलियैन नै, हम त डॉक्टर बनब बला फैक्ट्री में कार्यरत एकटा मजूर छी।  फेर हम पुछलियैन जे अहाँ अपन मालिक एतय की करै छी? ओ बजलाह जे सत कहु त लोक हमरा ओकर चमचा कहैत अछि। बाद बांकी अहाँ हमरा ओकर ड्राइवर, नौकर, खबास,मित्र जे मोन से कही सकै छि।  बुढ़बा  के  कनियाँ  छै नै, बेटा पुतहु बैंगलोर रहे छै, दस कट्टा में घर बन्हने अछि।  ओत्तेक टा घर में हमहि ओकरा संग रहै छि।

फेर ओ बतबै लागल जे हमर बेटा के ओ अपन पाई से कोचिंग करेलक आ अब बेटा आईआईटी में पढ़ैत अछि।  एकटा बेटी अछि जेकरा रेडियोग्राफी में डिप्लोमा करा रहल अछि आ कहलक अछि जे कोर्स केला पर ओकरा लेल एकटा इमेजिंग सेंटर खोली देत पार्टनरशिप पर।  हम मोने मोन सोचय लागलौं जे एकर मालिक एकरा कत्तेक मानै छै।  आ इहो जे ओकरा बुढ़बा-बुढ़बा कहि के सम्बोधित करै अछि से लगावे से करैत हेतैक!  ओ अपन मालिक के काज-धंधा के आरो बहुत रास सेक्रेट सब बतेलक जेकर चर्चा केनाइ ठीक नै रहत।  जहाज पर हमर सीट विंडो बला छल आ ओ सज्जन संगे एकटा आर लड़का छल दुनू खिड़की से हुलकि हुलकि के देखै के चक्कर में हमरा पीसय लागल।  एहि बीच मे एकटा परिचारिका कॉफी ल क एलीह आ हिनका देलखिन। दूध आ चीनी के पैकेट ख़तम छल से जा ओ आनय गेलीह ता ई कोफ़ी बनाय सडक़ लागलाह।  बस मुँहक स्वाद कड़वा भ गेलैन। ता में ओ परिचारिका दूध चीनी ल एलीह आ हम कॉफी बना पिबय लगलहुँ। हिनका भेलैन जे ओ बूडि बनी गेलाह।  हम पुछलियैन जे चाहि की? ओ हं बजलाह। तखन हम परिचारिका से एकटा आर कॉफी के रिक्वेस्ट केलिये जे ओ मानी गेल।  भोजन केला के उपरांत हाथ पोछैत ओ बजलाह जे भोजन त निक छल, ओहु से निक प्लेट छल मुदा भाते कम देलक से पेट नैं भरल।  अस्तु एही प्रकारे ओ हमर मनोरंजन करैत बंगलोर पहुंचेला।  अब सुनु कहानी के दोसर भाग।

 

अपन कार्य के सिलसिला में हम मेडिकल कॉलेज/अस्पताल के प्रोफ़ेसर, हेड आदि से भेंट करैत रहैत छि।  मुदा दिल्ली में या कहि जे उत्तर भारत के बड़का लोक सब जतेक हाय-फाय में रहैत अछि तेहन हम ओतय नै देखलौं।  सेंट जॉन मेडिकल कॉलेज में जखन हम डीन से भेंट केलौं त ओकर साधारण भेष-भूषा, बोली-व्यवहार हमरा आकर्षित केलक।  दिल्ली में जहां इंविजिलेशन में साधारण नॉन-मेडिकल स्टाफ के लगा देल जाय अछि, ओतय ड्यूटी में रेजिडेंट डॉक्टर सब के लगायल गेल छल।  ई एकटा क्रिश्चिनिटी कॉलेज छल जै में ड्यूटी पर कइएक टा महिला छलीह।  १-२ टा नन छोड़ि हम देखलौं से सभटा महिला बहुत सलीका सं सीटल साड़ी पहिरने छलीह। किछु नवयुवती सलवार सूट पहिरने छलीह ओहो कन्वेंशनल टाइप।  हम सोचै लागलहुँ जे नव-नव मॉडर्न ड्रेस क्रिस्चन समाज से आयल अछि जे देश-विदेश में सभठाम पसरल अछि।  ई सब निश्चिते कन्वर्टेड क्रिश्चन हेति मुदा धर्म परिवर्तनक बादो अपन भेष-भूषा संस्कृति नै त्यागलीह अछि।  अगत्या भोजन काल में जखन भोजन कर गेलहुँ त देखैत छि जे डीन सहित रेजिडेंट डॉक्टर आ सभटा बड़का-छोटका स्टाफ एकहि टेबल पर एक संगे भोजन कर बैसैत गेल जे उत्तर भारत में नै देखल जाय अछि।  एतय अक्सरहा पैघ-छोट पद के भेदभाव करल जाय छै।  भोजन लेल हम जखन चम्मच खोजय लागलौं त चम्मचे ने।  डीन हमर मोनक बात बुझैत बजलाह जे सर, हमरा दिस चम्मच से खाय के परम्परा नै छैक तैं, एम्हर चम्मच नै राखल जाय छै।  फेर ओ एकटा चपरासी के बजा क कतहु सं एकटा चम्मच के व्यवस्था करय कहलखिन।  पांच मिनट बाद ओ कतहु सं एकटा चम्मच के जोगार क के आनलक।  हम फेर सोचै लागलहुँ जे चमच-काँटा से खाय के पद्धति कदाचित क्रिस्चन सब आनलक मुदा ई सब हाथ से खेबा के दक्खिन के परम्परा पर अखनो कायम छैथ।  फेर हम सोचै लगलहुँ जे एकटा ई सब छैथ जे धर्म बदलनेहो अपन संस्कृति नैं बिसरला  आ एकटा हम सभ छि जे अंग्रेजिया बनय के चक्कर में  शनैः-शनैः अपन संस्कृति बिसरल जा रहल छि।

[संस्मरण – अक्तूबर 2017]