Saturday 31 August 2019

"कुली लाइन्स" पुस्तक समीक्षा



विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर एक व्यंग कथा संग्रह के बाद दो दूर देशों की यात्रा वृतांत और फिर .................. कुली लाइंस।


किताब के प्रकाशन के वक्त मैंने कहा था की जिस गति से मैं लेखक को पढ़ता हूँ उस गति से ये नई किताब लिख डालते हैं। एक सज्जन ने तो यहाँ तक कह दिया की प्रवीण जी जिस गति से और जिस विविधता से लिखते हैं, यदि 2-4 अफेयर कर लें तो राजकलम के नए वर्जन साबित हो सकते हैं।


कुली लाइंस के जरिए लेखक ने भारतीय इतिहास के एक अनछुए या कम छूए पहलू पर प्रकाश डालने का कार्य किया है। जहां पहले की किताबें लेखक ने अपने बुद्धि, अनुभव और सोच के आधार पर लिखी हैं वही इस पुस्तक मे इनके साथ ही शोध का बड़ा इनपुट डाला गया है। जिस तरह के विषय और जिस तरह का शोध किताब मे दिखता है यह सच मे ही सरहनीय है क्योंकि निश्चित ही इसके लिए काफी मेहनत और यात्रा की गई होगी। पुस्तक मे सभी संदर्भों को फुटनोट और इंडेक्सिंग के जरिये बेहतर तरीके से रखा गया है। एक समीक्षक के शब्दों मे कहें तो लेखक पेशे से भले चिकित्सक हैं पर इनके अंदर एक इतिहासिक जासूस छिपा है जिसने इतिहास के पन्नों से कुछ ऐसे तथ्यों को ढूंढ निकालने का प्रयास किया है जो कही छिप गए थे।


पुस्तक को जब आप पढ़ना शुरू करते हैं तो ऐसा लगता है जैसे किसी तिलिस्म मे घुसते जा रहे हो। हिन्द महासागर के रियूनियन द्वीप की ओर 1826 ई. में मज़दूरों से भरा जहाज़ बढ़ रहा था। यह शुरुआत थी भारत की जड़ों से लाखों भारतीयों को अलग करने की। औद्योगिक क्रांति के बाद अंग्रेजों और कुछ अन्य यूरोपीय देशों द्वारा विशाल साम्राज्य के लालच मे अपने कॉलोनियों के गरीब और लाचार लाखों मानवों के साथ अमानवीय व्यवहार का स्याह पक्क्ष  और हिन्दुस्तानी बिदेसियों के संघर्ष की यह गाथा क्यों  भुला दी गई? एक सामन्तवादी भारत से अनजान द्वीपों पर गये ये अँगूठा-छाप लोग आख़िर किस तरह जी पाये? उनकी पीढ़ियों से हिन्दुस्तानियत ख़त्म हो गई या बची हुई है? यदि बची हुई  है तो किस तरह से? लेखक पुराने आर्काइवों, भिन्न भाषाओं में लिखे रिपोर्ताज़ों और गिरमिट वंशजों से यह तफ़्तीश करने निकलते हैं। उन्हें षड्यन्त्र और यातनाओं के मध्य खड़ा होता एक ऐसा भारत नज़र आने लगता है, जिसमें मुख्य भूमि की वर्तमान समस्याओं के कई सूत्र हैं। मॉरीशस से कनाडा तक की फ़ाइलों में ऐसे कई राज़ दबे हैं, जिसपर से पर्दा हटाने का प्रयास लेखक करते नजर आते हैं। यद्यपि लेखक के अथक प्रयासों के बाद भी पुस्तक मे कई कहानियों के अधूरे तार ही डाले गए हैं, पर इस उम्मीद के साथ की पाठकों तक पहुँचने के बाद इन अधूरे तारों को जोड़ने की संभावना बने।


पुस्तक को पढ़ते हुए पाठक को कई जानकारियाँ मिलती है। हिन्द महासागर में स्थित रियूनियन द्वीप, सूरीनाम, मॉरीशस, सेशेल्स, फिज़ी, दक्षिणी अमेरिका के गुयाना, ट्रिनिडाड और टोबैगो, जमैका, यूरोप के नीदरलैंड, युगान्डा, जंजीबार, दक्षिणी अफ्रीका, कनाडा के अलावा करीबी देश म्यांमार, सिंगापुर और मलेशिया आदि देशों में बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, मद्रास आदि राज्यों से भारी संख्या में भारतीयों को ले जाया गया। यहाँ इन लोगों मे से अधिकांश को बहला फुसला कर ले जाया गया, वो भी एक ऐसे कंटरैक्ट(गिरमिट) के तहत, जिसके बारे मे उन्हे बिलकुल भी भान तक नहीं था। उन्हे झूठे-मुठे सपने दिखाए गए, और उनके साथ यात्रा के दौरान तथा बाद मे भी वर्षों तक अत्याचार और शोषण किया गया। इस पुस्तक के जरिये लेखक ने उस समय के भारतीय गांवों के सामाजिक और आर्थिक स्थिति को भी छूने की कोशिश की है। लेखक ने कई संभ्रांत महिलाओं और पुरुषों का उल्लेख किया है जो उस वक्त के विशिष्ट सामाजिक परिवेश की वजह से अरकाटी के झांसे मे आ गए और स्वेच्छा से गिरमिटिया बनाने को तैयार हुए। इन महिलाओं के साथ भी बहुत अत्याचार, यौनाचार और हत्याओं की बहुत सी घटनाएँ हुई।


पुस्तक के द्वारा जहां “अरकाटी”, “कन्त्राकी” जैसे कई शब्दों के विषय मे ज्ञान होता है वहीं “चटनी संगीत”, “बैठक संगीत” आदि शब्दों से भी परिचय होता है।


इस किताब को पढ़ने से पहले मैं रामचरित मानस को हिंदुओं के एक बड़े धर्मग्रंथ के रूप मे जानता था, पर इस किताब को पढ़कर यह अहसास होता है कि तुलसीदास जी ने आमजनों की भाषा मे राम कथा लिखकर मानव इतिहास के लिए कितना बड़ा काम किया है। अलग अलग देश मे गिरमिटिया बना कर ले जा रहे लाखों लोग 60 से 90 दिन के जहाज़ी यात्रा पर अत्यंत दयनीय और विपरीत परिस्थिति मे भगवान राम के और रामचरित मानस के कथा के बल पर प्राप्त ऊर्जा के सहारे ही खुद को बचाए रख सके और आगे के एक अपरिचित देश मे जंगल और बागानो मे काम करते हुए अपने जीवन संघर्ष को पूरा कर सके ताकि उनका वंश आगे तक चल पाए।  पुस्तक मे पंडित तोताराम के साथ ही एक मौलवी साहब का भी जिक्र आता है, जो जहाज पर और बाद मे गिरमिट जीवन के दौरान भी लोगों को रामचरित मानस की कथा बाँचते हैं, जिससे लोगों का दुख-दर्द कम, होता है और उनमे जीवन संघर्ष की प्रेरणा मिलती है, साथ ही यह एक अच्छा जरिया यूनियन(एक) होने का भी था। इनके अलावा रामगुलाम, लछमन दास, जानकी आदि कई ऐसे पात्र के संदर्भ पाठक को रोमांचित करते हैं जो अमानवीय परीथितियों मे भी अपने जिजीविषा और अपने हुनर से एक भुला दिये गए इतिहास मे ही सही अपनी एक विशिष्ट जगह बनाते हैं।


इस पुस्तक के जरिये गांधीजी के विषय मे भी कुछ और अंजाने पहलुओं को जानने का अवसर मिलता है। जहां तोताराम जैसे गिरमिट के साथ गांधीजी संपर्क मे बने रहते हैं और उनके द्वारा प्राप्त जानकारी के आधार पर गिरमिटिया मजदूरों की स्थिति को विश्व पटल पर रखते हैं वहीं, मनीनाल डॉक्टर जैसे अपने सिपाहसालारों को फ़िजी और मौरिसस जैसे देशों मे इनके हक की कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए भेज कर इनके स्थिति मे परिवर्तन की कवायद करते हैं।


पुस्तक के द्वारा पाठकों को इन लाखों अनपढ़ मजदूरों के जिजीविषा और संघर्ष के साथ ही इनके आगे के पीढ़ियों के बारे मे जानने का भी अवसर मिलता है। पुस्तक के द्वारा पता चलता है की कैसे कैरेबियाई देश मे ये लोग भारत से आम ले कर जाते हैं। धान की खेती और गौपालन शुरू करते हैं। धीरे धीरे जिस देश मे गए वहाँ के आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था मे खुद को मजबूत करते हैं। अपने आगामी पीढ़ियों को पढ़ाते-लिखाते हैं और और उच्च स्थान तक पहुंचाते हैं। (कमला प्रसाद बिसेसर, आसना कन्हाई, शिवसागर रामगुलाम, महेंद्र चौधरी आदि कुछ अग्रणी नाम हैं). इन सब के बीच भी जबकि वो अपनी मान मर्यादा, जात, कहीं कहीं धर्म आदि सबकुछ खो देते हैं किन्तु अपनी संस्कृति, अपनी भाषा और अपना भारतीयपन बचा के रखने मे कामियाब होते हैं, साथ ही कामयाब होते हैं अपने नई पीढ़ी को एक सम्मानित और सुखी जिंदगी देने मे।

पुस्तक से सबसे यादगार संवाद मेरे लिए तोतराम जी का है जब उनके खाने को लेकर एक अंग्रेज़ उनसे पूछता है की "टुम किटना खाता है, टुम आदमी है की घोड़ा?" इसके जवाब मे तोताराम जी कहते हैं "हुजूर था तो आदमी ही पर कुदाल थमहाकर आपने घोड़ा बना दिया"

कुल मिलाकर देखें तो पुस्तक आपको भावुक करेगी, रोमांचित करेगी और कई जानकारियाँ देने के साथ ही इस संदर्भ मे कुछ और जानने को भी प्रेरित करेगी। इसीलिए मुझे लगता है की यह पुस्तक हर उस भारतीय को पढ़ना चाहिए जो आधुनिक इतिहास के कुछ अनछूए पहलू को जानना चाहते हैं, अपने देश के सांस्कृतिक फैलाव के विषय मे जानना-मनन करना चाहती है।

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