Saturday 28 September 2019

“गिद्ध” (मैथिली लघुकथा) [giddh - Maithili short story]

“बाबी गै घर पर गिद्ध बैस गेने की होईत छैक?” रमण अपन बालमन में उठल प्रश्न बाबी से पुछैत बाजल छल भोरहे से गाम में अनहोर उठल छल जे सीडी झा के घर पर गिद्ध बैस गेलै य।

"बाउ रे जै घर पर गिद्ध बैस जाइत छै ने तै घर में भूत-प्रेत के वास होमय लागैत छै
किएकि गिद्ध बड्ढ अधलाह जीव होइत छैक, मुइल जीव के नोचि के खाइत छैक”
 
रमण कइएक बेर गिद्ध नामक ऐ विशालकाय पक्षी के घरक पछुआर में बड़का ताड़ गाछ पर बैसल देखने छल, आ गोटेक बेर बाबी संगे खेत दिस गेला पर देखने छल मुइल जानवर के मांस नोचैत
। 

मुदा रमण टीवी पर रामायण मे देखने छल जे जटायु आ संपाती नाम के गिद्ध के त महिमा मंडन कैल गेल छै। हुनका सबके आदरणीय मानल गेल छैक। ई विरोधाभास के ल क अकसरहा रमन के मोन मे भ्रम के स्थिति ठाढ़ भ जाय छल।

ई घटना ओय समय के छल जखन रमण करीब छ: वर्षक बालक छलाह आ गाम में रहैत छलाह
समय बितला पर रमण अपन बाबी आ माय संगे बाबूजी लग रह गाजियाबाद चलि आयल छल रमण के बाबूजी गाजियाबाद के एकटा फैक्ट्री में अकाउंटेंट के काज करैत छलखिन रमण के नाम एकटा प्राइवेट इस्कूल में लिखा देल गेल छल आब रमण 13  वर्ष के भ गेल छलाह घर से इस्कूल करीब २ किलोमीटर छलै रमण रोज सायकल से इस्कूल जाइत छलाह रास्ता में एकटा चौर पड़ै छलै जै में रमण देखैत छलाह जे लोक अपन मुइल पशु सबहक लहास फेंक के चलि जाय छल रमण देखैत छल जे अक्सरहां एकटा 16-17 वर्षक छौरा ओय लहास के चमड़ा छोड़ाबैत रहे छल आ ओय लहास के गिद्ध-कुकुर सब मिल के खाइय छल, बाद में ओ छौरा ओय में से बचल हड्डी सब के सोहो अपना झोरा में भरि लैत छल ई देख के रमण के ओ छौरा के प्रति बड्ड घिन आबैत छलै, मुदा मोन में जिज्ञासा सेहो उठैत छलै जे "ओ एहन अधलाह काज किएक करैत अछि?" ओय हड्डी सब के ओ की करैत अछि? ककरो-ककरो से ओ सुनने छल जे किछ लोक हड्डी से कालाजादू करैत छैक? कतेको बेर रमण के भेलै जे ओकरा जा के पूछी जे "तों ई की करैत छहक आ ऐ काज से तोरा की भेटैत छह?" मुदा रमण के अपन आ ओकर वेश-भूषा के अंतर सदिखन ओकरा लग जा क ओकरा विषय में बात करै के साहस करै से रोकि दैत छल

एक दिन रमण जखन इस्कूल जाय छल त ओकरा घर से कनिकबे आगाँ एकटा मोदियाइन के घर छलै, जे 3-4 टा माल जाल पोसने छल
ओ देखलक जे ओत  किछु गोटे ओहि छौरा के घेरने छल आ अंधाधुंध लठियेने छलै भीड़ से किछु सम्मिलित स्वर सुनबा में आबि रहल छल जे "मार सार के, ई गिद्ध थिकै, यैह बड्ड दिन से नजर लगउने छल फलां के माल पर जाहि कारणे ओ मरि गेल बहुतो के माल जाल पर एकर गिद्ध बला नजैर रहैत छैक... आदि आदि।" मारि खाइत-खाइत छौरा अधमरू भ गेल छल। ओ त निक भेलै जे कियौ पुलिस के सूचित क देने रहै, तैं पुलिस आबि के भीड़ के तीतर-बितर केलकै आ ओहि छौरा के जान बचलै

किछु दिन बाद एकदिन रमण घर पर कोनो बात से रूसल छल
छुट्टी के दिन छलैक ओ नेहेनहो सोनेने नै छल एहिना गंजी पैजामा पहिरने घर से परा गेल छल घुमैत-घामैत ओहि चौर दिस पहुँचल देखलक त ओ छौरा फेर नजैर एलै बस फेर की, रमण ओकरा लग पहुँचलै ओकरा पुछलकै हौ! तो एहन अधलाह काज किएक करै छहक? लोक के माल-जाल के काला-जादू से मारि दैत छहक, आ ओकर खाल खिंचैत छहक! ओहि दिन एतेक मारि लागलह तैयो फेर यैह काज!

ओ कहलक मुइल माल-जाल के खाल-हड्डी निकालनाइ हमर खानदानी धंधा छियै
मुदा हमसब किनको माल-जाल के मारि दैत छियै आ की नजैर-गुजैर लगा दैत छियै ई सौ टका अनर्गल आरोप अछि हमरा सब पर ऐ तरहे भीड़ अक्सरहा हमरा सब पर अत्याचार करैत अछि

हमसब जे ई चमड़ा छोड़ा के ल जाइत छी, ताहि के सफैया क के आ फेर पोलिस आदि क चमका के रंग रंगक, जुत्ता, बेल्ट, बैग, पर्स आ कतेको आन आन श्रृंगारक आ उपयोगक वास्तुजात बनायल जाइत अछि, जे सभगोटे के भोग्य आ शुद्ध बुझना जाइत छैक
आ अहाँ की कहलियै हड्डी.....हा..हा..हा.., यौ जी हड्डी के हमसब कालाजादू के उपयोग नै करैत छियै सभटा माल दिल्ली के शाहदरा-उस्मानपुर एरिया में भेज देल जाइत छैक जत ओकर सफैया होइत छैक फेर फैक्ट्री में कटाई-घिसाई-पोलिस क के रंग रंग के सजावट के वास्तु जात, भगवान क मूर्ति, स्त्रीगण के श्रृंगार के लेल माला-झुमका आदि कतेको आकर्षक वस्तुजात एहि हड्डी सभ के बनायल जाइत छैक बड़का मेला आ मार्केट सब में जे सस्ता सस्ता में मोती माला सब देखैत छियैक, से कोनो असली होइत छैक! सभटा एहि हड्डी सब के बनाओल जाइत छैक से ई वस्तु जात कियौ हो, पंडित, मुल्ला, बनिया-रार, साहेब-गुलाम सब के सिनेह्गर लागैत छैक, आ हमरा सन के काज केनिहार सभके लेल अधलाह होइत छैक!  

जौं हमरा सन के काज केनिहार नै होइ, आ ई गिद्ध कुकुर नै होइ त अहाँक ई समाज मुइल जानवर के सड़ल लहास से पटल पड़ल रहत आ ओकरा कियौ उठेनाहर नै भेंटत
हम सब छी त अहाँ सब ऐ सड़ांध से छुटकारा पाबैत छी मुदा तैयो अहाँ सब हमरा सब के गिद्ध कहि प्रताड़ित करबै, मौक़ा पाबिते लठियेबै, मारबई, आ इज्जत के त खैर छोड़िये दिय!

आब रमण सब किछु बुझि गेल छल। पारिस्थितिकि में गिद्ध के महत्वो, आ इहो बुझि गेल छल कि केना अहाँक पहिरन-ओरहन सेहो अहाँके कोनो लोक से संवाद करै में आ ओकरा विषय में वास्तविकता जानै में एकटा अवरोधक जेकाँ काज करै छैक
रमण के मोन पड़लैन जे कोना गांधीजी चम्पारण में किसानक दुखदर्द के देख अपन सूट-बूट त्यागि देने छलाह, तै के बाद हुनका देश के अंतिम आ सबसे कमजोर तबका सब के समस्या समझ में भांगट नै रहल छलैन्ह 
 
इति।

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