Monday 11 December 2023

नई आशा (लेखक एवं अनुवादक : प्रणव झा )

 

मीरा आज पहली बार हवाई जहाज की यात्रा कर रही थी; पटना से बैंगलोर, दिल्ली होते हुए। पटना से तो वह दिल्ली पहुँच गई थी, किन्तु दिल्ली से बैंगलोर की फ्लाइट दो घंटे के बाद थी। मीरा इंदिरा गांधी हवाई अड्डा के प्रतीक्षालय में बैठकर इंतजार कर रही थी । दरअसल बात यह थी कि वो अपनी एक छात्र आशा की शादी मे शामिल होने के लिए बंगलुरु जा रही थी। मीरा को विशेष रूप से आशा ने न्योता दिया था और न्योता के साथ ही हवाई जहाज का टिकट भिजवाई थी।  और सबसे विशेष बात यह कि मीरा जिस फ्लाइट से बंगलुरु जाने वाली थी उसका पाइलट और कोई नहीं बल्कि आशा के होनेवाले पति आकाश कुमार हैं। बैठे बैठे मीरा का मन अतीत की यात्रा करने लगा।

 

मीरा गाँव के मध्य विद्यालय मे शिक्षिका हैं। एक अच्छी शिक्षिका जो बच्चों को बहुत प्यार करनेवाली है। बात कुछ 15-16 वर्ष पहले की है। मीरा ने शिक्षा के व्यवसाय को अपनाया था तो इस मूल मंत्र के साथ कि “सभी बच्चे भगवती की संतान है और उनको लाड-दुलार करना मानव का कर्तव्य।“ किन्तु उनके कक्षा मे एक बच्ची आती थी जिसका नाम था “आशा”। दूसरे बच्चे तो ठीक-ठाक से रहते थे किन्तु आशा न तो ठीक से विद्यालय के कपड़े पहनती थी न ही उसकी किताबें और बस्ता ठीक से व्यवस्थित रहता था। ना ही सर मे तेल दिए, न ही ठीक से बाल बनाए। मैले-कुचैले मे लिपटी हुई! यह सब देख मीरा को उससे घिन आता था। और वह चाहकर भी उसे न ठीक से पढ़ा पाती थी और न ही उसे दुलार कर पाती थी, बल्कि कभी-कभी उसे दुत्कार भी देती थी। किन्तु मीरा को अपने इस व्यवहार पर कभी कभी आत्म ग्लानि भी होती थी। एक दिन अपनी इस समस्या को मीरा विद्यालय के प्रधानाध्यापक साहब से साझा की थी। सर आप कहते हैं कि “सभी बच्चे भगवती की संतान है और उनको लाड-दुलार करना मानव का कर्तव्य।“ मैं इस विचार को मानती हूँ। किन्तु आप ही कहिए कि उस बच्ची से मैं कैसे प्यार कर सकती हूँ जो न ढंग से कपड़े पहनती हैं, न जिसे साफ-सफाई का लिहाज है। विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री शशिभूषण झा बड़े ही सौम्य व्यक्तित्व के इंसान थे। उन्होने मीरा की सारी बातें सुनकर कहा :  “मीरा आपने उस बच्ची की समस्या देखी, किन्तु क्या आपने उस समस्या का कारण जानने का प्रयत्न किया? आपने यदि यह जानने का प्रयत्न किया होता तो आपको आज इस बात की तकलीफ नहीं होती की आप अपने कर्तव्यों का पालन ठीक ढंग से नहीं कर पा रही हैं। वो बच्ची एक दुखियारी बच्ची है जिसके पिता एक दिहाड़ी मजदूर हैं और माँ कैंसर से पीड़ित! अब आप ही बताओ कि इस स्थिति मे उसकी ठीक से देखभाल कौन करेगा? और इस सब मे उस बच्ची का क्या दोष?

 मीरा ! सुंदर चिकने बच्चों को तो सभी प्यार कर लेते हैं किन्तु आशा जैसे जो ईश्वर के संतान हैं, उनसे जो प्यार कर पाते हैं वही ईश्वर के सच्चे सेवक होते हैं। क्या! आपको अभी भी कोई आशंका या असमंजश है?

 

मीरा को अपने सभी प्रश्नों का उत्तर मिल चुका था। और वो अपनी कमियों को भी पहचान गई थी। और अब समय था उन कमियों से पार पाने की। मीरा ने अब अपना सारा ज्ञान और प्यार आशा पर उड़ेल दिया था। उसके पढ़ाई-लिखाई, कपड़े-लत्ते तेल-साबुन सबका ध्यान वो रखने लगी थी। कालांतर मे आशा की माँ का देहांत हो गया था। और आशा ने भी मीरा के क्षत्रछाया मे रहते हुए दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। उसने दसवीं की परीक्षा मे सम्पूर्ण जिले मे शीर्ष स्थान प्राप्त किया था। डीएम साहब ने इस उपलब्धि के लिए आशा को अपने हाथों से सम्मानित किया था। किन्तु यह तो कामियाबी की पहली सीढ़ी थी। अभी कामियाबी के कई कहानियाँ लिखनी बाँकी थी।

 

दसवीं के बाद आशा को पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृति भी मिलने लगा किन्तु अब उसके पिताजी उसके विवाह की तैयारी मे लग गए । यह बात रोते रोते आशा ने मीरा को बताई थी। मीरा ने उस दिन उसे बहुत मुश्किल से चुप कराया था। “अरे इसके लिए तुम ऐसे रो क्यूँ रही हो? मैं समझाउंगी न तुम्हारे पिताजी को, और वो समझ भी जाएंगे। मैं शिक्षिका जो बनी वो किस लिए ? अरे मेरा तो काम ही है लोगों को भला-बुरा समझना। और मैंने कैसे कैसे को तो समझा कर पटरी पर लाई हूँ। तुम तो समझदार बच्ची हो, तुम तो आगे खूब पढ़ोगी और बड़ी डॉक्टर बनोगी।“ मीरा द्वारा सांत्वना देने के लिए कहे गए ये वाक्य आशा के मन मे घर कर गए थे।

 

मीरा ने आशा के पिताजी को बुलवाया । उनसे बोली अरे जी आप पर भगवती ने कृपा की है कि इतनी अच्छी बेटी दी है जो दसवीं की परीक्षा मे सारे जिले मे प्रथम आ कर आपके साथ ही गाँव-समाज का भी नाम ऊंचा की है। और आप इसके पैरों मे विवाह की जंजीर बांधना चाह रहे हैं! आशा के पिताजी बोले “ देवीजी आप बोल तो ठीक ही रही हैं किन्तु मैं गरीब अनपढ़ व्यक्ति हूँ, दिहाड़ी मजदूरी पर जीने वाला व्यक्ति और आगे-पीछे कोई है नहीं सम्हालने वाला; माता इसकी पहले ही छोड़ कर जा चुकी है। ऐसे मे आप ही बताएं कि बेटी के बाप होने के नाते मैं इसका विवाह कर इसका घर बसा देने के विषय मे सोचता हूँ तो क्या गलत करता हूँ?” मीरा ने कहा आप अपने क्षमता अनुसार तो अच्छा ही सोच रहे हैं किन्तु इससे आगे बढ़िए। आशा कोई साधारण लड़की नहीं है। उसमे समाज को आगे बढ़ाने का सामर्थ्य अभी से ही दिख रहा है। अतः आप इस निजी समस्या से आगे की सोचने का प्रयास करिए। उसे अभी उसके  पढ़ाई के समर्थन एहु एक छात्रवृत्ति मिली है, आगे और कई सारी मिलेंगी जिसके बल पर वो आगे अपनी पढ़ाई और निजी जीवन मे स्वाबलम्बी हो जाएगी। उस पर भी यही आपको भरोसा नहीं है तो मैं आपको वचन देती हूँ कि आज से आशा का सारा भार मैं उठाने के लिए तैयार हूँ। इसी प्रकार से येन केन प्रकारें दलील देकर मीरा ने आशा के पिताजी को राजी कर लिया था। अब आशा का नाम इंटर मे लिखवा दिया गया था। 

 

दरभंगा मे रहकर वो सी एम विज्ञान महाविद्यालय से इंटर की पढ़ाई करने लगी और साथ ही मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयार भी। अपना खर्च निकालने हेतु वो ट्यूशन भी पढ़ना शुरू कर दी थी और साथ ही आवश्यकता पड़ने पर उसे मीरा का मार्गदर्शन और सहयोग भी मिल जाता था। इसी प्रकार मीरा के मार्गदर्शन, आशीर्वाद और अपनी मेहनत-लगन का फल आशा को यह मिला कि वो इंटर के साथ साथ बीसीईसीई परीक्षा भी उत्तीर्ण कर गई थी और दरभंगा मेडिकल कॉलेज मे उसे एमबीबीएस पाठ्यक्रम मे प्रवेश मिल गया था। अब आशा नए पंख लगाकर सफलता के नए ‘आकाश’ मे उड़ने के लिए तैयार थी।

 

दिन गुजरते गया और क्रमशः आशा एमबीबीएस करके चिकित्सक की प्राथमिक डिग्री हासिल कर ली साथ ही पीजी चिकित्सा प्रवेश परीक्षा मे अच्छा स्थान लाकर वो जीपमर मे एमडी मेडिसिन के पाठ्यक्रम मे भी प्रवेश पा गई। इस प्रकार वो पीजी भी की और आज

 नरायणा ह्रुदयालया बैंगलुरू में डीएनबी(कार्डियोलोजी) के ट्रेनिंग के साथ सिनियर रेसीडेंसी कर रही है।  समय के इस कालक्रम मे आशा का संपर्क मीरा से धीरे-धीरे कम होता चला गया था। किन्तु आशा ने अपने मूल्यों और संस्कारों को सम्हाल कर रखा था। सफलता के इस आकाश पर चढ़ने के बावजूद वो अपने वजूद और उसे बनानेवाली अपनी शिक्षिका को नहीं भूली थी। इसीलिए तो वो बाचचित के क्रम मे अक्सर ही आकाश जी से मीरा दीदी की चर्चा करते नहीं थकती थी। और अक्सर कहती थी कि मेरी शादी मे कोई आए न आए मीरा दीदी को तो बुलाउंगी ही। और आकाश मज़ाक मे उत्तर देते थे कि आप चिंता मत करो आपकी मीरा दीदी को तो मैं अपने ही जहाज पर चढ़ा कर लिए चला आऊँगा, नहीं तो आपका क्या भरोसा कि कहीं शादी ही करने से माना कर दो !

 

यही सब सोचते हुए अचानक माइक पर विमान की उद्घोषणा सुन कर मीरा का ध्यान टूटा और वो अपना समान उठाते हुए चेकइन के लिए विदा हो गई।

 

-        9 अक्तूबर 2016

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