शनिवार, 11 अप्रैल 2015

अपन अपन धर्म (संस्मरण)

 वाकया अछि 15 जनवरी 2014 के जखन हम अपन माँ-पप्पा संगे गंगा सागर (सागर आइलैंडसे तिलासंक्रान्ति के बाद घुरै छलौं | जखन हम सब मिनीबस में बैसल जेटी घाट दिस जाइत रही तखने किछु नवतुरिया छौरा-छौरी सब हमर सब के गाडी के रोकलक | एतय हम  बता देब चाहे छी के मकर संक्रांति मेलाके समय पर सागर द्धीप  पर यातायात अव्यवस्था के असुविधे देखय के लेल भेंटल छल | तीर्थयात्री  सब के रेलमपेल पड़ल छल | एहन में  एक झुण्ड नवतुरिया के अचानक गाडी रोकैत देख मोन आशंकित भेलजे की बात अछि  ! मुदा हमारा  देख आश्चर्य भेल जे एहन बीहड़ में एतेक असुविधा के बीच  हिन्दू तीर्थस्थलपर  नवतुरिया छौरा-छौरी के झुण्ड क्रिस्चैनिटी के प्रचार करै लेल आयल छल | पहिने  हमारा आश्चर्य भेलकिन्तु पाछाँ हम अंदाज केलौं जे एहेन शायद  लेल अछि किएक  एहि दुर्गम अनमार्केटाइज्ड  अनब्रांडेड तीर्थस्थल पर अधिकांशतमध्यमवर्गीय एवं निम्नवर्गीय तीर्थयात्री सब आबैत जाइ अछि जे एकर सब के मुख्य टारगेटेट वर्ग होइ अछि कन्वर्जन के लेल | खैरहम  कहै छलहुँ जे  छौरा-छौरी सब एकटा डायरीनुमा किताब बाँटै छल ओहो फ्री में जे हिंदी अंग्रेजी  बांगला में उपलब्ध छल | हम र माँ के बुझना गेलै जे कोनो धार्मिक किताब बैंट रहल अछि तहि सं ओहो एकटा  लेलक | अपना देश में यदि कोनो वस्तु फ्री भेंटै  ओकरा प्राप्त कर से केयौ चूक नै चाहै अछि, स्वाइत पप्पो एकटा  लेलैथ | आगा बढ़ला पर माँ के पुछला पर हम हुनका बतेलिएन जे  क्रिस्चैनिटी (दोसर धर्मके धर्म ग्रन्थ अछि    छौंड़ा-छौंरी सब एहि किताब के मार्फ़त अपनधर्म के प्रचार करै छल | एहि पर पप्पा कहलैथ जे तखन   किताब के फेंक देब के चाहि |  पर हमर माँ जे पढ़ल-लिखल नै अछि  एकटा धार्मिक मैथिल ब्राम्हण महिला अछि  कहलक जे "नै  एकटा धार्मिक ग्रन्थअछि (भले आने धर्म के किए नै होयताहि लेल एकरा एम्हर-आम्हार फेँकनाई उचित नै अछि ,  ताहि लेल एकरा अपना सब रास्ता में गंगाजी में भँसा देब (जेना की अपने सब अपन धार्मिक अवशेष संग सेहो करै छी ) |" आगा हम सब ओहि किताब के गंगाजी में भँसा देने छलिये | 

उपरोक्त  घटना के बाद हम सोचै लागलौ जे हमर माँओ के एकटा धर्म अछि जे सनातन अछि जे अपना में आके सास्वत राखैतो सब धर्म के सम्मान केनाइ सिखबै अछि (जेना की गीता में स्वयं गोविन्द सेहो कहै छैथ ) 

दोसर तरफ  नवतुरिया छौंड़ा-छौंरी के भी अपन धर्म अछि जे ओकरा सब के अपन मेहनत  ढौआ खर्च  अपन धर्म के प्रचार कर के लेल प्रेरित करै अछि |  देश-दुनिया में किछु एहनो समूह अछि जे धर्म के नाम पर अलगाववाद  आतंकवाद सं घृणित काज के अंजाम दैत अछि  अपने धर्म  कौम के बदनाम करै अछि किछु लोक एहनो अछि जे जबरदस्ती अपन-अपन धर्म के ठेकेदार बैन जाइ अछि जिनका लेल धर्म केर  एकमात्र अर्थ दोसर धर्म के लोक सब के निंदा केनाइ  ओकरा सब के प्रति घृणा फैलेनाइ अछि | एहन लोकसब या  धर्म के ठेकेदारी  एकर धंधा करै अछि या एहन गोरखधंधा करै बला सब के चंगुल में फँसल दिक्भ्रमित लोक सब होइ अछि | हम इहो सोचै लागलौं जे अपने सब के ओइ नवतुरिया सब से प्रेरणो लेबै केचाहि की अपने सब के धर्मसमाजभाषा आदि के निक बात सब के अपन मेहनत  व्यवहार द्वारा देश दुनिया के सामने राखै के चाहि | प्रेरणा  एत  हमर माँओ के अवधारणा  व्यवहार सं भेटै अछि ...फिलहाल त बस एतबे ...फेर भेंटइ छी बाद में.....नमस्कार 
(नोट: ई लेख पूर्व में एहि ब्लॉग पर  हिंदी भाषा में प्रकाशित भ चुकल अछि |)

के अहां . . . हमरा लेल?

के अहां . . . हमरा लेल?

अहां प्रेरणा छी हमर, जिनका लेल

हम आगां बढि जाय चाहैछि ।

अहां मान छी हमर जिनका होबय सं

हम शान सं जीब पाबैछि ।

अहां शक्ति छी हमर जिनका होबय सं

हम सब अवरोध सं पार पाबैछि ।

अहां अभिलाषा छी हमर, जिनका

हम कयामत धरि पाबै चाहैछि ।

अहां आश छी हमर जिनका पबय हेतु

हम कदम-कदम आगा धरि चलल जाइछि ।

अहां लोरी छी हमरा लेल, जकरा सुनि क

हम चैन के निंद सुतैछि ।

अहां संगीत छी हमरा लेल, जिनक तान

हमर हृदयक स्पंदन में गुंजायमान अछि ।

अहां कल्पना छी हमर, जै पर सवार भ

हम ब्रह्मांड्क यात्रा लेल उत्साहित छी ।

अहां पुष्प छी जकर सौंदर्य आ गंध सं

हमर आत्मा प्रतिपल ताजा होई अछि ।

अहां बसात छी हमरा लेल, जेकर

हर बूंद के हम जनमों सं पियासल छी ।

अहां तपिस छी हमरा लेल, जनिक विरह में

हम दिवा-निशि जड़ैत रहलौं अछि ।

अहां पूर्णिमा छी हमरा लेल, जिनक शितलता

में सदिखन हम नहाय चाहैछि ।

अहां लता छी हमरा लेल जिनका पाश में

हम ताउम्र बन्हाय चाहैछि ।

अहां शिवा छी हमरा लेल, जिनकर भक्ति में

हम डूब जाय चाहैछि ।

अहां प्रार्थना छी हमरा लेल, जे

हम माईक चरण में गाब चहै छी ।

अहां वचन छी हमरा लेल, जे हम

आजीवन निभाब चाहैछि ।

अहां  ज्ञान   छी हमर जेकर अंशु सं

हम दिवानिशि ज्योतिर्मय होबय चाहैछि ।

अहां जान छी हमर जिनका

जानय के हम अभिलाषी छी ।

अहां आत्मा छी हमर  जिनका

हम आत्मसात कर चाहैछि ।

    -  ७ अप्रैल २०१५ 

कौन तुम मेरे लिए ?


कौन तुम मेरे लिए ?

तुम प्रेरणा हो मेरी, जिसकी वजह से

मैं शान से जी पाता हूं ।

तुम शक्ति हो मेरी जिसकी वजह से

मैं हर रूकावट से लड़ पाता हूं ।

तुम अभिलाषा हो मेरी

जिसे मैं कयामत तक पाना चाहता हूं ।

तुम अभिमान हो मेरी जिसकी वजह से

मैं हर कदम आगे चल पाता हूं ।

तुम लोरी हो मेरे लिए, जिसे सुनकर

मैं चैन की निंद सो पाता हूं ।

तुम संगीत हो मेरे लिए, जो

मेरे ह्रदय के स्पंदन में बजता है ।

तुम कल्पना हो मेरे लिए, जिसपर सवार हो

मैं ब्रह्मांड की यात्रा को उद्यत हूं ।

तुम पुष्प हो जिसके सौंदर्य और गंध से

मैं प्रतिपल ताजा हो जाता हूं ।

तुम बारिश हो मेरे लिए, जिसकी हर बूंद का

जन्मों से मैं प्यासा हूं ।

तुम तपिस हो मेरे लिए, जिसकी विरह में

मैं दिवा-रात्रि ज्वलित होता हूं ।

तुम चांदनी हो मेरे लिए, जिसकी शीतलता में

मैं प्रतिपल नहाना चाहता हूं ।

तुम लता हो मेरे लिए, जिसके आबंध में

मैं ताउम्र बंधना चाहता हूं ।

तुम शिवा हो मेरे लिए, जिसकी भक्ती में

मैं डूब जाना चाहता हूं ।

तुम प्रार्थना हो मेरे लिए, जिसे

मैं मां के चरणों में गाना चाहता हूं ।

तुम वचन हो मेरे लिए, जिसे

मैं आजीवन निभाना चाहता हूं ।

तुम ज्ञान  हो मेरा जिसकी अंशु से

मैं निशदिन ज्योतिर्मय होना चाहता हूं ।

तुम जान हो मेरी, जिसे

मैं जानना चाहता हूं ।

तुम आत्मा हो मेरी, जिसे

मैं आत्मसात करना चाहता हूं ।

- २७ मई २०१०

गुरुवार, 26 मार्च 2015

मैट्रीक परीक्षा (लय: तालों में नैनीताल...)

बौआ के काज छै पढ़ाई आ नै  की घुमैया
पढ़ाई काल में नहीं बाबू ने भैया

एक्जाम नजदीक एलौ रे
पढ़ाई के घडी छौ
सब एतबे कहतो रे
पढ़ाई सब से पैघ छै

परीक्षा में बोर्ड परीक्षा
बाँकी अपन इक्षा...
आबै एहि बात पर करै छी पढ़ैया


बौआ के काज छै पढ़ाई आ नै  की घुमैया
पढ़ाई काल में नहीं बाबू ने भैया

महावीर गोहरैला से आब काज नै चलतौ
कबुलो केला से नै मार्ग सुधरतौ
परीक्षा में नक़ल के आस, सेहो हेतौ बलैया
पढ़ाई काल में नहीं बाबू ने भैया ...


बौआ के काज छै पढ़ाई आ नै  की घुमैया
पढ़ाई काल में नहीं बाबू ने भैया

एटम बम सेहो बस पासे करेतौ
गेस पेपर सब सेहो बस नम्बरे दिएतौ
ज्ञानक लेल करही टेक्स्ट बुक के पढ़ैया...
पढ़ाई काल में नहीं बाबू ने भैया ...


बौआ के काज छै पढ़ाई आ नै  की घुमैया
पढ़ाई काल में नहीं बाबू ने भैया

- 02.10.2000

सोमवार, 29 दिसंबर 2014

माँ वीणापाणी वर दे (लय: इस मोड़ से जाते हैं -फ़िल्म -आंधी)



मां वीणापाणी वर दे, संगीतमई वर दे, मंजूज्ञान वर दे
मां वीणापाणी वर दे
अज्ञान अंधेरे में, विभत्स पशुनर में, अबोध अवचेतन मन तक
नवचेतना तू भर दे . . . मां वीणापाणी वर दे

पीड़ाएं सभी हर कर, उल्लास जो भरती है
वो नैसर्गिक झंकार, तेरी वीणा से निकलती है
मेरी लेखनी में भी मां,वो रौशनी तू भर दे, जन जन तक जो पहूंचती है
मां वीणापाणी वर दे

मां वीणापाणी वर दे, संगीतमई वर दे, मंजूज्ञान वर दे
मां वीणापाणी वर दे
अज्ञान अंधेरे में, विभत्स पशुनर में, अबोध अवचेतन मन तक
नवचेतना तू भर दे . . . मां वीणापाणी वर दे
मां वीणापाणी वर दे

तेरे ज्ञान  की ज्योति से मां इंसान प्रबुद्ध हुए
विज्ञान के बल से मां विकसित और बुद्ध हुए
इंसानी अंतर्मन को अंतर तक शुद्ध करो
ये प्रणव वन्दना माँ अब तो स्वीकार कर लो

मां वीणापाणी वर दे, संगीतमई वर दे, मंजूज्ञान वर दे

आज्ञान अंधेरे में, विभत्स पशुनर में, अबोध अवचेतन मन तक
नवचेतना तू भर दे . . . मां वीणापाणी वर दे
मां वीणापाणी वर दे
२८.१२.२०१४

अतीत के आईने से कुछ मुक्तक

ये शाम भी गुजर जाएगी हवा बनकर
रात की अंधियाली भी छोड़ जाएगी बेवफ़ा बनकर
हमे तो इंतजार है उस सवेरे का
सुबह जो आए मेरे लिए दुआ बनकर
२७/०४/२०१४

दर्द के परछाई से पीछा छुड़Éना है
आशा की किरण तु ऐसी रौशनी कर दे
या कि न देख सकूं खुद को भी मैं
मेरी जिंदगी में ऐसी अंधियाली भर दे
०९/०५/२०१४

तेरे सजदे में गुजारी है ये जिंदगी सारी
मेरी जद से तु परे हुआ, जबसे तु खुदा हो गया
१४.०५.२०१४

कभी मिट्टी की खुशबू में मुझे ढूंढकर देखो
इसके हर कण में सना मैं तुझे मिल जाउंगा
२८.०५.२०१४

तुम क्या हो और मैं तुम्हे क्या कहूं
बस चाहत है की सदा तेरी नजरों में रहूं
२८.०५.१४
मेरा मिट्टी है जो कि हर बार बिखर जाता है
ख्वाब बनकर हवा, हर बार हाथों से निकल जाता है
२८.०५.२०१४

हजारों ख्वाब ऐसे हैं, जो टूटे अब तलक मेरे;
निगाहें फ़िर भी जुट जाती है इक और ख्वाब बुनने मे
३१.०५.२०१४

कुछ इस तरह भरमाया जिंदगी तुने;
अब तो आदत सी हो गई है, भ्रम पालने की मुझको
११.०६.२०१४

कहीं इक राह की साहिल पे बैठा था सदा ले के
खुदाया काश ! की तुम इक बार वहां भी देख तो लेते
२१.१२.२०१४

तसव्वुर में समाए हो कभी तो रूबरू आओ
हमारे रूह में बसकर, वहां पर घर बना जाओ
२१.१२.२०१४

पंछी बनकर उड़ नहीं पाया
पंख कटवाए बैंठा हूं;
अपाहिज सी जिंदगी हो गई
और आप पुछते हो कैसा हूं !!
व्योम का विस्तार देख
मैं डर गया या हार गया !
दुविधा के भंवर में फ़सकर,
इसपार ना उसपार गया !!
जूलाई २०१०

बेबस हैं हम, हमें यूं न आजमाया करो;
दोस्ती की है तो, कभी दोस्ती का फ़र्ज भी निभाया करो !
कभी खुद रोते हो, कभी हमे रूला जाते हो
क्या इसी तरह दोस्ती का फ़र्ज निभाते हो !!
०२.०७.२०११

कुछ लोग साथी की चाहत में फ़ना हुए
कुछ लोग साथी की हिफ़ाजत में फ़ना हुए
तुम बात करते हो अकेले चलने की
हम तो अकेलेपन के इनायत में फ़ना हुए
०२.०७.२०११

तेरे प्रीत से आलोकित है जिंदगी मेरी
तेरे चेहरे का अवलंबन है जिंदगी मेरी
तुम कौन हो और क्या पहचान है तुम्हारी?
जिसके होने के गुमान से है हर खुशी मेरी
०२.०७.२०११

इक बादल है जो मिटकर भी
दो बूंद खुशी के दे जाए
इक हम इंसान हैं,
जो जीकर भी
मानवता के न काम आए
०२.०७.२०११

बादल के गरज से सीखा है
राहत की बूंदे बरसाना
सीखा है हमने मिटकर भी
मानवता के न काम आना
०२.०७.२०११

कुछ तो बात है तुझमें मेरी नजरों के लिए
कि तेरे दीदार को ये मेरे दिल में भी झांक लेती है
होठों पर लग जाते हैं ताले खामोशी के
पर ये उंगलियां सारे जज्बात कह देती है
०२.०७.२०११

न आए तुम मेरी गलियों में और न ये बादल
प्यास बढाती रही मेरे रूह की पल-पल
सजी है हर राह यूं तो बाजारी खुशबूओं से
महक मिट्टी की मिली ना मिली तेरे रूख्सारों की इक पल
जूलाई २०१२

खामोशी से सो गए आज फ़िर ओढकर रात की चादर
सोचा था थाम्होगे तुम मेरा दामन ख्वाबों में आकर
पर हासिल तेरा यहां भी मुकम्मल न रहा
ख्वाब में भी मैं अक्सर तन्हा ही रहा
जूलाई २०१३

बादल आज फ़िर आए थे तुम मेरे आंगन
और बरस कर चले गए
मैं तेरा धन्यवाद भी न कर सका
शायद तुम व्यस्त थे सबकी प्यास बुझाने में
पर कल तुम फ़िर आना
बांहें खोलकर करना है तुम्हारा स्वागत
और भिंगोना है तेरी बूंदों से अपना दामन !
जून २०११