उदित होते और ढलते तुमको हमने रोज देखा है
तपिश पाकर तुम्हारी हमने अमृत रोज सेंका है
सुनो आदित्य तुमको देवता माना सदा हमने
तुम्हारे पास आना है, ये ज़िद ठाना सदा हमने
नदी, सागर, ये पर्वत, वन तुम्ही आबाद करते हो
धरा पर सृष्टि को, तुमही तो जिंदाबाद करते हो
हमें मालूम है तेरी तपस्या, त्याग भी तेरा
प्रलय अग्नि को समेटे हुए दिन रात जलते हो
सुना है रुक गया था रथ सती के शाप से नभ में
समझकर फल श्री हनुमान जी ने रख लिया मुख में
थमा था जग भी तेरे संग, दिवाकर तुम कहते हो
कोई भी सभ्यता हो, पूजते हैं सब तुम्हे जग में.
सुनो आदित्य तुमसे फिर जरा कुछ बात करनी है
करीब आकर तुम्हारे तुमसे एक मुलाक़ात करनी है
तुम्हारे आग में लिपटे कुछ-एक और राज खोलूं मैं
मैं भारत भू से आया हूँ, तुम्हारी बात करनी है.
#ISRO #AdityaL1 #MakarSankranti🙂
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