Wednesday 24 January 2024

युग का धर्म

 

युग का धर्म

लेखक : हरिमोहन झा  अनुवादक: प्रणव झा

रमेश बाबू, वो कन्या साक्षात् लक्ष्मी है। देखने मे दुर्गा की मुर्त्ति, शील-स्वभावमे गंगा। भोजन कराने मे अन्नपूर्णा। कहाँ तक वर्णन करू? सुबह उठकर फूल तोड़ती है। गोसाउनि की सिरा लिपती है। अर्घा-सराइ धोती है। स्नान करके भगवती की पूजा करती है। यह सभी कार्य सूर्योदय से  पहले ही कर लेती है। क्यों हो! वंश कैसा है! एक पक्षसे कछुआ पंजी, दूसरे पक्ष से नरहा पंजी। दुर्गापाठ जो करती है वो अहा हा! क्या शुद्ध-शुद्ध पवित्र उच्चारण कि सुनते ही रहें! रात मे रामायण महाभारत पढ कर आँगन मे सुनाती है। और उसपर विनीत ऐसी कि बिना माता-चाची का पैर दबाए कभी नहीं सोती है। सलज्ज ऐसी कि पिता से मुँह भर नहीं बोलती है। रमेश बाबू! वैसी कन्या विश्वमे दुर्लभ है। यदि वो आपके घरमे जाए तो अपना भाग्य समझिए।

इतना कह कर पं० चतुरानन झा रमेश बाबू के मुखाकृति को लक्ष्य करने लगे कि इस वक्तृता का कैसा प्रभाव उनपर पड़ा है। परन्तु रमेश बाबू पूर्ववत सिगरेट का धूआँ उड़ाते रहे। पुनः हाथ का घड़ी देख कर बोले- पं० जी, अब टेनिस का टाइम हो गया अच्छा, नमस्ते।

यह कहकर रमेश बाबू रैकेट नचाते हुए विदा हो गए। पं० जी एक मिनट तक मुँह बाए खड़े रहे। तत्पश्चात पाग पहनकर क्षुब्ध होते हुए विदा हुए। रास्ते मे मिले त्रिलोचन चौधरी। वो सारी बातें समझकर बोले - पं० जी, आप बालू से तेल निकालने गए थे? रमेश बाबू को मैं खूब जानता हूँ। कितने ही कन्यागत उनके द्वारपर अपना सर पटक कर रह गए , परन्तु उनके नाकपर मक्खी नहीं बैठी। रामायण पाठ करनेवाली कन्या को वो देखना नहीं चाहते हैं। जो स्वयं को  'दासी' कहकर  स्वामी को चिट्ठी लिखती है उसे वो पशुतुल्य समझते हैं। वो गोली मार कर मर जाएंगे ये भले कबूल होगा, किन्तु वैसी कन्या से विवाह नहीं करेंगे। आपने व्यर्थ ही दुर्गापाठ का नाम कह कर उनको और भी हड़का दिया है। अब वो आपको वह रिस्ता होना कभी भी संभव नहीं है।

पं० जी अपना सर पीटते हुए बोले यह उनके बुद्धि का दोष कहें अथवा मेरे कर्म का दोष कहूँ। जब ऐसी सर्वगुण-संपन्न कुलीन कन्या उनको पसंद नहीं, तब फिर कैसी कन्या से विवाह करना चाहते हैं?

त्रिलोचन चौधरी एक चुटकी कतरा पं० जी के आगे बढ़ाते हुए बोले - पं० जी! आप हैं सात्विक व्यक्ति। आजकल के नौजवानों का हाल नहीं जानते हैं। रमेश बाबू को जाति-पंजी, वंशमूल या कुल-मर्यादा से कोई प्रयोजन नहीं है। उनको केवल अंग्रेजी पढ़ी कन्या चाहिए। इंगलिश मे गाली भी देगी वो उनको पसंद आएगा परन्तु संस्कृत मे स्तोत्र पढ़ने वाली भी नापसंद। इसलिए एक लड़की -मिस नर्गिस झा का नाम बी० एस० सी० के रिजल्ट मे देखे हैं। उसी पर लट्टू हैं। कन्या के पिता नहीं हैं और माँ....

तदुपरान्त चौधरी जी बहुत समय तक पं० जी के कानमे सब फुसफुसा कर कहते रहें

सब कुछ सुन लेने के उपरान्त पं० जी ने अपनी चुटिया खोल ली और और प्रतिज्ञा करते हुए बोले अब मेरी कन्या जब उस घर मे नहीं गई तो वो छोकरी भी नहीं ही पाएगी। मैं अभी जाकर रमेश बाबू के चाचा के कान मे सारी बातें डाल देता हूँ जैसे होगा वैसे इस रिस्ते को बिगारूंगा।

यह कहकर पं० चतुरानन झा चाणक्य की भांति दृढसंकल्प होकर विदा हुए।

रमेश बाबू कहीं जाने हेतु सूट-बूट लगा रहे थे तबतक चाचा आकार बोले - रमेश! तुमसे कुछ बात करनी है।

रमेश बैठ गए। चाचा कहने लगे देखो, अब तुम्हारे पिता के स्थान पर मैं ही हूँ। भाभी जी मन मे यह इच्छा लिए ही चली गई की बहू का मुँह देख लूँ। तुमने अब डाक्टरी पास कर ली है। घर बसाना जरूरी है। तब जैसे उच्च कुल के तुम हो ...

रमेश बाबू बात काटते हुए बोले - चाचा साहब! जरा मुख्तसर में कहिए। मुझे अभी एक लड़की को देखने जाना है।

चाचा बोले यही जानकर तो मैं आया हूँ तुम जिस कन्या को देखने जा रहे हो उसका पूरा हुलिया मुझे मिल चुका है। वह टेलीफोन आफिस मे काम करती है। उसकी मान तुम्हें फँसाना चाहती है। जब कन्या के विषयमे सब सुन लोगे तो वहाँ पर जाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।

रमेश बाबू चुपचाप धैर्यपूर्वक चाचा के लेक्चर को सुनने लगे चाचा ने पहले नासिका मे तंबाकू चूर्ण ठूंस लिया। तब कहने लाहे जानते हो ? कन्या का मूल क्या है ? कर्महै उढ़रा ! पिता तेलिबभना था माता छोटबभनी है किस-किस वृत्ति से वो विधवा बेटी को पढ़ाई है वह  जगजाहिर है, मेरा खून क्यों खौलाओगे ? वो छोकरी अपनी माँ से भी बढ़कर है। अवस्था बाइस वर्ष से कम नहीं होगी। ताड़ के पेड़ जैसी लंबी बी० एस० सी० क्या कर ली लगता है जैसे जग जीत ली हो धर्म, कर्म, देवता-पितर कुछ नहीं समझती है उसको भदबा लगता है दिक्शूल पंडित लोगों को मुर्ख समान समझती है जन्म तो इसी देश मे हुआ है , परन्तु मेम का कान काटती है। जुत्ता मोजा पहनकर, फ्राक कस के, माथे पर जुल्फी रखकर , कान मे चोंगा लगाए , सैकड़ो पुरुष के बीच मे टेलीफोन का काम करती है। उसको छुआछूत का जरा भी विचार नहीं है। क्रिश्चन लड़की के बीच मे रहती है उनके संग खाती-पीती है। सिगरेट पीती है। जरा सा अंग्रेजी गिटपिट करने गया है सो अपने शान के बराबर मे किसी को रखती ही नहीं है। घंटे-घंटे मे फैशन बदलती है , कभी साड़ी मे, कभी सलवार मे कभी गाउन मे ! जहाँ पाँच बजे शाम को आफिस से छुट्टी मिला कि उजला जूता पहनकर  फुदकते हुए दो-दो सीढ़ी एकबार मे उतर जाती है और साइकिल पर सवार होकर दनदनाते हुए टेनिस के मैदान मे जा कूदती है सुना है कि बारह बजे रात को क्लब से नृत्य करके आती है। अजी, लाज-लिहाज तो जरा सा भी नहीं है। कितने ही यार-दोस्त के साथ पार्टी मे जाती है , सिनेमा देखती है उसका ठिकाना नहि माँ को खुशी होता है कि वाह ! मेरी बेटी खूब कमाती है। कहाँ तक कहूँ? वो लड़की सारा धाख संकोच घोलकर पी गई है। निर्लज्ज ऐसी कि जॅंघिया पहनकर तालाब मे तैर जाती है। दस दस लड़के आगे-पीछे  घेरे रहते हैं ? ऐसी हड़ाशंखनी यदि घर मे गई तो घर का सत्यानाश ही समझो। तुम्हें तो एक से एक कुलीन कन्या मिल जाएगी और उसमे क्या है ? उसकी माँ क्या तुम्हें फूटी कौड़ी भी देगी ? बल्कि तुम्ही को चूस लेगी ऊपर से पाउडर पोते रहती है उसी पर तो छोकरी शान से फटी जाती है , कहीं मेम जैसी गोरी होती तो जाने क्या करती! एक घड़ी को भी शांत नहीं हमेशा ही अंग-अंग थिरकता रहता है। ऐसी कन्या से क्या घर चल सकता है? अंग्रेजी नोवेल पढ़ती है, सिनेमा देखती है, पियानो बजाती है , नृत्य करती है। ऐसी लड़की लाना हाथी पालने जैसा है। महीने मे सैकड़ो रुपए स्नो-क्रीम, सेण्ट-पाउडर , साया-ब्रेसरी ` ` ` ` `

रमेश बाबू और ज्यादा नहीं सुन सके पूछे - चाचाजी ! आपने जो कहा है क्या वह सब सच है ?

चाचा दक्षिण दिशा मे घूमकर बोले मैं वंश के नीचे हूँ, जौं एक भी बात झूठ कही हो तो। वो लोग ऐसी मायाविनी है कि दो ही मिनट मे लोगों को मोह लेती है। तुम भी जाते तो वैसे ही बातें करती , वैसे ही मुसकुराती कि तुम निश्चय जाल मे फॅंस जाते यह तो रक्ष रहा कि मुझे एन मौके पर पता लाग गया

रमेश बाबू अपने चाचा के पैर पर गिर पड़े चाचा गद्गद होते हुए बोले  - यह भगवान की कृपा है कि तुम्हारे अंदर सुबुद्धि गया अब तो उस लड़की को देखने हेतु पटना नहीं जाओगे ?

रमेश बाबू उनके पैर को पकड़े ही बोले - नही, चाचाजी ! अब उसे देखने की कोई जरूरत नही रही

चाचा ने अपने भतीजे को गले लगा लिया बोलेफिर तुम हुए  योग्यक संतान ! महादेव झा का खून ! अपने वंश का खून ! अपने वंश का मर्यादा कभी छूट सकता है ? मैं आज ही माँ-बेटी को ऐसा कड़ा जवाब भिजवा देता हूँ कि फिर तुम्हें ठगने का साहस नहीं होगा।

रमेश बाबू बोले - चाचाजी ! आप गलत समझे अभी तक मुझे डिटेल नहि मालूम था मगर आपने जो 'डिस्क्रिप्शन' दिया, उसे सुनकर मैं अब एक मिनट भी देर करना नही चाहता अगर उसका आधा क्वैलिफिकेशन भी लड़की मे मौजूद हो तो मैं अपने को 'लकी' समझूंगा मैं फौरन टेलीग्राम भेज देता हूँ कि मैं मैरिज के लिए तैयार हूँ ` ` ` ` ` चाचाजी , इसका क्रेडिट आप ही को है

यह कहकर रमेश बाबू अपने चाचा से लिपट गए। चाचा विस्मय से आवाक होकर मुँह देखते रह गए

 

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